पंचकोश जिज्ञासा समाधान (06-12-2024)
कक्षा (06-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
नारदपरिव्राजकोपनिषद् में आया है कि संन्यासी को वानप्रस्थ व गृहस्थी से सम्पर्क नहीं रखना चाहिए, का क्या अर्थ है
- बहुत बार संन्यासियों के लिए कहा जाता है आप गाँव के बाहर या मन्दिर में रूकने को कहा जाता है क्योंकि समाज में बहुत से विकार व विकृतियां होती है तो इनसे थोड़ा दूर रहा जाए
- यहा सावधानियो की दृष्टि से भी यह बात कही गई है कि यदि आप पूर्ण रूप से साधना में उतरे है तो पूर्ण रूप से ही उन नियमों का पालन व आचरण करना पड़ेगा
चक्षुपनिषद् में आया है कि सवितादेव शुद्ध स्वरूप है, हंसमय है, शुचि एवं अप्रतिमय रूप है, उन सवितादेव के तेजोमय रूप की तुलना करने वाला अन्य कोई भी नहीं है जो विद्वान मनीषी बाह्मण इस चक्षुषी विद्या का नित्य प्रति पाठ करता है तो उसके चक्षु से संबंधित किसी भी तरह के रोग नहीं होते, उसके कुल में कोई अंधा नहीं होता, इस विद्या को 8 ब्राह्मणो बह्मनिष्ठो को याद करा देने पर यह विद्या सिद्ध हो जाती है, का क्या अर्थ है
- 8 बाह्मणो को याद करा देने का अर्थ यह है कि यदि आपको लाभ हुआ है तो इस विद्या को औरो को भी बाटिएं
- गुरुदेव ने गायंत्री महाविज्ञान में भी कहा है कि यह दिव्य प्रसाद औरो को भी बाटा जाएं
- जब आपको उपासना व साधना से सिद्धि मिल गई है तो इसे ओरो को भी बाटा जांए, केवल अपने तक सीमित न रखा जाए और यह हमारा कर्तव्य भी बनता है
- गुरुदेव ने जब 24 लाख मंत्र जप का पुरश्चरण किया तथा परिपक्वता आ गई तब उन्होंने दीक्षा देना प्रारम्भ कर दिया ताकि औरो का भी कल्याण हो, तथा लाखों का कल्याण भी किया
- 8 इसलिए भी लिखा गया कि समय व परिस्थिति के अनुरूप लिखा गया, उस समय Population कम होगी तथा 8-8 लोग करेंगे तो सभी के पास यह विद्या पहुंच जाएगी
वांग्मय 22 में आया है कि वर्तमान मनोविज्ञान मन की मुख्यता दो दशाए बतलाता है, पहली अस्त व्यस्त और खंडित तथा दूसरी Integrated, पहली में दुःख, परेशानियां व मनोरोगो आदि का अनुभव होता है तथा दूसरी में शांति, सुख व समर्थतता का, अध्यात्म मनोविज्ञान में इसे और भी अच्छे तरीके से बताया गया है, इसके अनुसार मन की 5 अवस्थाएं है क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध, ये पांच अवस्थाए कौन कौन सी है
- मन की पांचो अवस्थायो को चित्त के परिपेक्ष में लिया गया है
- पतंजलि के योग दर्शन के पहले ही श्लोक में योगा चित्त वृति निरोधा आया है, इन्ही पांचो वृतियो का इसमें वर्णन किया गया है
- शुरुवात में मन किसी भी चीज को स्वीकार नहीं करता, विक्षिप्त अवस्था एक प्रकार की पागलपन की अवस्था है
- मूढ अवस्था विक्षिप्त से आगे की अवस्था है, इसमे व्यक्ति गलत तो नहीं करता परन्तु उसे सही बात भी समझ में नहीं आ रही
- एकाग्र अवस्था में व्यक्ति चित्त वृतियों को नियत्रिंत करके अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है
- जब संस्कार के बीज भी नष्ट हों जाए तो इसे निरुद्ध अवस्था कहते हैं
- साधना की इस यात्रा में ये स्थितियां बनती जाती है तथा गुरुदेव ने इसका वर्णन पतंजलि के योग दर्शन में किया है
क्या पदार्थ व आत्मिक जगत की तुलना लोक व परलोक से की जा सकती है, कृप्या प्रकाश डाला जाए
- की जा सकती हैं, सप्त लोको में भू लोक पृथ्वी लोक व इसके उपर भुवः स्वः मह: जनः तपः सत्यम लोक भी है, वास्तव में ये सभी चेतना की ही परते है
- केवल मरने के बाद ही नही अपितु जीवित रहते हुए भी व्यक्ति इन लोको में जीता है, धीरे-धीरे आत्मिक परिष्कार से यह अलग-अलग स्थिति आती जाती है
- गुरुदेव शरीर छोड़ने के बाद सत्य लोक में थे तथा जीते जी भी सत्य लोक में रहा करते थे, वे जहा रहे वही पर ही उन्होंने सत्य लोक बना लिया, ये सभी लोक चेतना की ही परते है जिनमें जीवित रहते भी व्यक्ति विचरण करता रहता है
गुरुदेव ने कहा है कि अपनी आवश्यकता, दूसरों का व्यवहार, अपनी परिस्थितियां मिलकर भावनाओं का निर्माण करती है कृपया स्पष्ट करें
- जब हमारा विचार व कर्म परिपक्व अवस्था में आता है तो भाव बन जाता है
- इसी को श्रद्धा भाव का विकसित होना कहते है, श्रद्धा विकसित करने के लिए कर्म ही करना पडता है
- कोई भी संकल्प जब हम लेते है तो पहले वह हमारे कर्म में उतरता है फिर हमारे चित्त में आता है तथा धीरे धीरे हमारा भाव बन जाता है फिर भाव श्रद्धा मे विकसित हो जाता है
- भाव की स्थिरता लंबे समय तक रहती है तथा यह जन्म जन्मांतरो तक बना रहता है
- फिर भाव से भी विचार प्रभावित होते है
- हमारा जैसा भाव आत्मा से जुडा है तो उसी प्रकार के भाव के कारण वैसा जन्म मिलता है तथा उसके विचार व कर्म भी भाव के अनुरूप बन जाते हैं
- आस पास की परिस्थितियो से भाव को बदला भी जा सकता है जैसे डाकू रत्नाकर से ऋषि वाल्मिकी का बनना, साधना से जुडने के बाद हमने भी अपने बहुत कुविचारो निकृष्टाताओं को बदला, हमने क्रियायोग स्वाध्याय विचार के माध्यम से धीरे धीरे प्रगति की तथा फिर वह भाव में बदल गया
किसी चीज से phobia brain के किस हिस्से को प्रभावित करता है
- यह Limbic system को प्रभावित करता है
- जहा पर त्रिकुटि रूपी आज्ञा चक्र है, वहा पर ध्यान के साथ भाव करने पर लाभ मिलता है
- अवचेतन मन में ही यह घटित होता है परन्तु अवचेतन मन Limbic system को माध्यम बनाता है
- Hypothalmas + Amgdala + त्रिकुटि व आज्ञा चक्र सारा Limbic system है
- Hippocampus में हमारी लंबे समय तक की यादे रहती हैं, कभी-कभी किन्हीं जन्म जन्मांतरों में हमारे साथ कोई घटना ऐसी घट गई है जिसका प्रभाव गहराई में जाकर हिप्पोकेंपस में Save हो जाता है तथा फिर कभी कभी अचानक सामने आ जाता है
- कई बार हमें plane crash होने के सपने आते रहते है, यह भी एक Phobia ही है
- जब अवचेतन मन में दबी हुई यादें बाहर निकलती हैं तो ये चेतन मन को प्रभावित करने लगती है तो फिर Amydala उसमें React करने लगता है
- सनक या अवसाद का आना यह Amgdala से होता है
- मस्तिष्क के मध्य में ध्यान करे तो लाभ होगा
- सामान्य अवस्था में सचेतन का Control होता है परन्तु Phobia / डर की स्थिति में अवचेतन मन सचेतन को overtake कर लेता है तथा फिर चाहकर भी व्यक्ति उस डर से बाहर नही निकल पाता
- जैसे सामान्य परिस्थितियों में Aeroplane, ATC के Control में रहते है परंतु युद्ध के समय में यह पूर्ण रूप से वायु सेना के नियंत्रण में आ जाता है
- हमें जिन परिस्थितयों में या जिन दृश्यों से हमें डर लगता है तो ऐसी परिस्थिति आने पर हमारा Autonomous Nervous System सक्रिय हो जाता है तथा फिर सचेतन का Control उस पर नही रहता तथा फिर अचेतन उसे Command कर लेता है
- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दवा के माध्यम से Chemical बनाकर उसे ठीक करने का प्रयास भी करती है परन्तु यह सटीक उपाय नहीं है
- आध्यात्म में यहा आज्ञा चक्र में मजबूत भावना के साथ ध्यान करने पर लाभ मिलता जाता है तथा यह जड़ से खत्म होता है
पंचकोश साधना के कौन से क्रिया योग इस अवस्था (Phobia) को समाप्त करने में अधिक लाभकारी रहेंगे
- सभी क्रिया योग प्रभावी रहेगे परन्तु ध्यान अधिक प्रभावशाली रहेगा
- जितना भी Hippocampus वाले हिस्से में (जो कि Limbic System का एक हिस्सा है), सफाई करेंगे, सविता देवता का ध्यान करेगे तो धीरे धीरे यह अवचेतन मन को प्रभावित करता जाएगा, इसमें समय अवश्य लगेगा परन्तु हम धर्य बनाए रखे तो सफलता अवश्य मिलेगी
- प्राणमय कोश की साधना भी साथ साथ रहेगी तो प्राण जब अधिक रहेगा तो भय नहीं लगता
- अन्नमय व प्राणमय को मजबूत बनाकर ही ध्यान मे गहराई मिलेगी व ध्यान के अधिक लाभ मिलेंगे
मुझे सपनो में चिल्लाने की आवाज आती है तथा स्कुटी चलाने का phobia भी है, इसके लिए क्या किया जा सकता है
- जब तक तत्वज्ञान नहीं होगा तब तक डर लगता रहेगा, शुरू में ड्राईव में सबको डर लगता है तो यह अभ्यास में आने पर ठीक हो जाएगा
- नींद में चिल्लाने की आवाज आना यह अवचेतन मन की एक आदत है, बचपन में मुझे भी थी, गायंत्री मंत्र के जप के बाद यह स्थिति कभी नही आई, इससे आंतरिक भय भी खत्म हो जाते हैं
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