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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-01-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-01-2025)

आज की कक्षा (22-01-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

कठोपनिषद् में आया है कि इंद्रियों की अपेक्षा उनके विषय अधिक श्रेष्ठ हैं, विषयों की अपेक्षा मन कहीं अधिक श्रेष्ठ है, मन से उत्कृष्ट बुद्धि व उस बुद्धि से भी श्रेष्ठ यह आत्मा है, यहा इंद्रियों की अपेक्षा विषय श्रेष्ठ बताया है तो यहा विषय को क्या समझेंगे

  • विषय यहा तन्मात्रा को कहा जाता है
  • जो भी पांच तत्व है उनका कुछ ना कुछ सूक्ष्म गुण होगा जिसके आधार पर पहचाना जा सके कि यह कौन सा तत्व है
  • इन्ही सूक्ष्म गुणो को तन्मात्रा कहते हैं
  • पृथ्वी के बनने से पहले गंध था
  • गंध निराकार था लेकिन उसे इक्कठा कर देगे तो कुछ न कुछ वस्तु बन जाएगी, इसे सूक्ष्म भूत कहा जाता है
    रूप रस गंध शब्द स्पर्श -> ये सभी सूक्ष्म भूत है
  • जब Light होगी तभी कोई रूप दिखेगा, रूप के लिए रोशनी की अनिवार्यता है
  • कोई आकृति तभी बनेगी जब Light Energy को Condense करेंगे
  • स्वाद, रस की तन्मात्रा है -> स्वाद के चलते व्यक्ति स्वास्थ्य खराब कर डालता है
  • इसलिए कहा गया है कि विषय मन को अपनी और खीचता है
  • आकाश की तन्मात्रा शब्द है
  • हवा की तन्मात्रा स्पर्श है
  • हवा दिख नहीं रहा परन्तु हवा में गतिशीलता है, गति उसकी पहचान है
  • शब्द (आवाज) के लिए आकाश (खाली जगह) चाहिए
  • इस तरह से आवाज में मध्यमा पश्यन्ति परा वाणी भी होती है जो दीवार को भी छेद कर चला जाएगा लेकिन इन सभी वाणियों की गति के लिए आकाश (space) चाहिए
  • आकाश भी बिल्कुल खाली नहीं है, आकाश में भी एक ईथर तत्व घुला हुआ है
  • आदमी के मन को रूप रस गंध शब्द स्पर्श प्रभावित करता है तथा अपनी और खीचता है -> इन्ही को विषय (subject) कहते हैं
  • Chemistry में विज्ञान वालो के लिए इसे समझना आसान है जैसे Salt Test में चख कर, आवाज को सुन कर या आकृति को देखकर यह पता लगाता है कि यह क्या है
  • अन्धे लोग छडी से व छडी के पटकने पर मिलने वाले Sound से यह पता चल जाता है आगे क्या है Solid है, Liquid है या अन्य कुछ वस्तु है

ब्रह्मविद्योपनिषद् में आया है कि जिस प्रकार मथने वाले दण्ड से दूध को मथा जाता है, उसी प्रकार चार कलाओं से युक्त हृदय में स्थित प्राण तत्व को शरीर में भ्रमण कराया जाता है, का क्या अर्थ है

  • यहा Heart का Anatomy दिया गया है
  • Heart के 4 Chambers को ही चार कलाओ के रूप में बताया है
  • Heart 4 Chambers are
    Right Atrium, Right Ventrical, Left Atrium, Left Ventrical
  1. Right Atrium: शरीर से रक्त प्राप्त करता है जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है
  2. Right Ventrical: ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए फेफड़ों में रक्त पंप करता है
    3.Left Atrium: फेफड़ों से रक्त प्राप्त करता है जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है
  3. Left Ventrical: महाधमनी के माध्यम से शरीर में रक्त पंप करता है
  • Ventrical = रक्त का संचार हृदय के भीतर से बाहर ( फेफड़े या शरीर ) की और होता है
  • Atrium = रक्त का संचार बाहर ( फेफड़े या शरीर ) से हृदय के भीतर होता है
  • उपर वाले 2 Chambers को Atrium तथा नीचे वाले 2 Chambers को Ventrical कहते है
  • इन्ही Chambers के साथ valves भी होते हैं तथा जब ये काम नहीं करते तो इन में spring / stunt डालना पड़ता है
  • दाया तरफ वाले Ventrical से रक्त फेफड़े में जाता है तथा बाया वाला Ventrical से रक्त पूरे शरीर में जाता है – ईश्वर का अद्भूत विज्ञान यहा कार्य करता है
  • अशुद्ध रक्त की गति कम है, वहा one way valve लगे रहते है, केवल एक तरफ से रक्त केवल आ सकता है परन्तु वापस नहीं जा सकता

आपने स्वामी राम कृष्ण परमहंस के बारे में बताया था कि वे हमेशा अल्फ़ा स्टेट में रहते थे, तो  अल्फ़ा स्टेट क्या होता है ? क्या उसके बाद बीटा व गामा स्टेट भी होता है ?

  • एल्फा स्टेट विज्ञान की भाषा में अलग है और आध्यात्म की भाषा में अलग है
  • आध्यात्म में एल्फा स्टेट सहज समाधि को कहते हैं, सहज समाधि वाला ज्ञान Traveller Cheque है जो अगले जन्म में भी जाएगा, जो भी साधना करेगे तो वह बेकार नही जाएगा
  • कबीर दास, राम कृष्ण परमहंस के पहले थे
  • ईश्वर के साथ तालबद्ध होकर बराबर खेलते रहना ही सहज समाधि है
  • ईश्वर के प्रति समर्पण रहेगा तो वह उससे खेलता रहेगा
  • बीटा की अवस्था = जब प्रवचन देते है तथा दूसरो को समझाते है, जैसे नरेन्द्र ने रामकृष्ण परमहंस से कहा कि नौकरी चाहिए तो उन्होंने कहा कि जाकर काली से मांग लो, नौकरी के लिए किसी व्यक्ति के पास नहीं भेजा, वे यह देखते थे कि किस प्रकार इसे आध्यात्म का Touch कराया जाए
  • उन्हे पता था कि नरेन्द्र एक Brilliant छात्र है, यदि सभी नौकरी में जाएगे तो आत्मानुसंधान  में कौन जाएगा
  • सभी पढ़े लिखे लोग डाक्टर या इंजीनियर बन गए तो फिर Research में कौन जाएगा
  • भारत ऋषियों का देश है, बहुत वैज्ञानिको की यहा भी आवश्यकता है तथा बहुत कुछ खोजना बाकी है -> Cold Energy पर अभी काम करना बाकी है
  • गामा स्टेट = जो बहुत तेज हो = युद्ध भी करे व ईश्वर को स्मरण भी करे, बहुत तेज तीर चलाते थे पता भी नहीं चलता था कि वह तीर कब Cross कर जाता था, यह अर्जुन की गामा अवस्था थी

एल्फा व गामा अवस्था में से कौन सी अवस्था, किस परिस्थिति में उपयोगी है

  • Concentration जरूरी हैं तथा सहज समाधि की अवस्था में Misuse न हो तथा हमारी हर थिरकन, हमारी हर सास ईश्वर के लिए हो
  • Practical में देखे जो लोग 100 से उपर की Speed पर Vehicle को अपने पूर्ण रूप से Command में रखते है तो वे बीटा से आगे की अवस्था में जा रहे हैं -> बहुत तेज गति में भी चौकन्ना बने रहना तथा Awarness नहीं खोना तथा concentration बनाए रखना

जो भौतिक जगत में रहकर आत्मस्थिति में है क्या उसे गामा अवस्था में कहा जा सकता है तथा क्या गामा अवस्था आत्मसाक्षात्कार के बाद आती है

  • Quick & Correct = गामा अवस्था = सिद्ध अवस्था
  • भौतिक जगत में गामा अवस्था आत्मसाक्षात्कार से पहले भी आ सकती है
  • आत्म साक्षात्कार में तो हमारा हर क्षण व हर सांस ईश्वर के लिए चलने लगता है
  • जो हमारा Frontal Lobe है, वहा 8-13 HZ का एल्फा तरंगें या इससे भी अधिक Frequency की तरंगें यही से निकलती है
  • 8 Hz. से आगे वाली सारी तरंगें -> एल्फा बीटा गामा सब Frontal Lobe से निकलेगा
  • 8 HZ से कम Frequency की तरंगें मस्तिष्क के पीछे वाले भाग से निकलती है
  • शिव जी ने Third Eye से लाल Laser किरणे निकाल कर कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया, लाल रंग में Heating अधिक रहता है

कहा जाता है की शिशु के व्यक्तित्व का ज्यादा भाग प्रारम्भ के 7  वर्षोमें हो जाता है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • क्योंकि छोटा बच्चा अभी कच्ची मिट्टी है तथा कच्ची मिट्टी को Shape दे सकते हैं, बाद में उसका Rigidness बढ़ेगा, उसकी अपनी समझ विकसित होती जाएगी तथा इस बीच में यदि उसे बताए नहीं तो फिर वह इसे जानने के लिए अपने ढंग से Practical करेगा
  • घड़े को तब तक Shape दे सकते हैं जब तक मिट्टी कच्ची है, यदि मिट्टी का पानी सूख गया तो फिर हम उसे Shape नहीं दे सकते, परेशानी होने लगेगी
  • शुरुवात में बालपन में उसका अवचेतन मन अधिक काम करने लगता है
  • गलती करने से पहले ही बाल अवस्था मे ही यदि बता दिए तो संसार में कम फसेंगा
  • गर्भ से ही पढ़ाया जाए, 9 महीने मां भी ज्ञानी बने तब बच्चा गर्भ से ही बहुत कुछ सीख लेगा
  • पांचो कोशो का निर्माण गर्भ में ही करे
  • नारद ने कयाधु (प्रहलाद की माँ) को मंत्र दीक्षा गर्भ में ही दे दिए, गभवस्था में ही एक अच्छा माहौल मिल जाए तो बहुत कमाल का है
  • शुरू से ही Personality Development का कार्य किया जा सकता है, बाद में काफी सुविधा रहेगी

परमात्मा ईश्वर ब्रह्म देवता प्रभु इन सबमें क्या अन्तर है

  • इसके लिए उपनिषदों का स्वाध्याय बनाए रखे
  • निरालम्बोपनिषद् का स्वाध्याय करे, उसमें इसी प्रकार के प्रश्न पूछे है कि ब्रह्म क्या है, ईश्वर क्या है, जीव क्या है, प्रकृति क्या है, परमात्मा क्या है -> इन सभी की व्याख्या यहा Transparent तरीके से दिया है
  • एक ही तत्व के अलग-अलग नाम पड जाते हैं
  • जब ईश्वर के अलावा यहां कोई दूसरा तत्व नहीं है तो यह साफ है कि ये सब ईश्वर के ही सारे नाम होगे,ये सभी खास गुण बोधक नाम है
  • ब्रह्म = सुप्रीमो = सबसे शक्तिशाली = हर चीज की पराकाष्टा वाला तत्व ही ब्रह्म है
  • बुद्धि = प्रकृति को ईश्वर की बुद्धि कहते है = उसे बुद्धि से अनंत लोकों को बना दिए और उसमें खुद प्रवेश कर गया और उसे एक डिसिप्लिन में चलाने लगा तब वही ब्रह्म ईश्वर कहलाने लगा
    ईशवर की बुद्धि = समष्टि
  • ईशान = Disipline / control में रखना
  • एक ही व्यक्ति अलग अलग काम करता है तो अलग अलग नाम पड़ जाते है जैसे पिता, पुत्र, पति, मित्र, भाई, कैमरामैन, ड्राईवर . . .
  • ज्ञान युक्त उर्जा = परमात्मा = जिससे संपूर्ण सृष्टि बनी है
  • भगवान = भक्त अपनी कल्पना के अनुसार ईश्वर की कल्पना करेगा, तब भक्त भगवान का निर्धारण कर लेगें

उदार मन के लिए क्या करना चाहिए

  • दूसरो की परिस्थितयों का भी ख्याल रखे तथा केवल अपना ही सुख ना देखे
  • पौधौ में भी जीवन होता है, पौधो को भी कष्ट होता है
  • अपराधियों को देखकर पौधे मुंह फेर लेते हैं
  • प्रेमी स्वभाव का कोई व्यक्ति जो पोधों को भी प्रेम करना वाला, सीचने वाला हो तो उसके साथ पौधे मुस्कुराते रहते है
  • प्रेम को बढाएंगे तो उदार मन होता जाएगा, प्रेम को छोटा करते जाएंगे तो व्यक्ति निष्ठुर होता जाएगा
  • फिर धीरे धीरे प्रेम को बढ़ाया जाए
  • अपने शरीर से पहले प्यार करना सीखे तो फिर हम अपने से कोई भी गलत वस्तु नहीं खाएंगे
  • ऐसा व्यक्ति को हम कह सकते है कि कम से कम वह अपने प्रति तो उदार है
  • धीरे-धीरे फिर वहअपनी मां के प्रति अपने पुत्र के प्रति अपने पिता के प्रति, Nature के प्रति व सभी के प्रति उदार होने लगता है -> यही उदारता है

मन और वाणी का तप किस प्रकार से करना चाहिए

  • जब भी विपरित परिस्थितयां आए तो उसमें अपने को Disturb न होने दे, विपरीत परिस्थितियों में अपने आप को Balance रखना तप है
  • वाणी का तप = पहले बिना मतलब का बोलना बंद करे तथा समय का ध्यान रखे व केवल काम की बात ही बोला जाए
  • धीरे धीरे अभ्यास करे
  • फोन पर बात कम समय में ही समाप्त किया जा सकता है
  • एक बात को कम समय में कैसे कहा जा सकता है जिसमें सारी बाते भी रखी जाए, यह देवऋषि नारद की बहुत बडी खुबी थी
  • जितने भी वेद मंत्र सभी सुत्र है तथा छोटे छोटे सुंत्रो सारी बाते कह दी गई है, अधिक बताने की आवश्यक्ता नही पड़ी

इस बार का महाकुंभ, 144 वर्ष के बाद लगा है तो क्या जाना ही चाहिए क्या यह जरूरी है

  • आस्था वाले ही वहा जाएंगे
  • श्रद्धा की अग्नि में आत्मा प्रदीप्त होती है सही जानकारी मिलने से श्रद्धा विकसित होती है
  • प्रयाग = जहा दो नदियों का मिलन होता है, वहा की जमीन संस्कारित होती है, उसमें Absorbant Power होता है तथा वहा लंबे समय तक Positive Vibration मिलता रहता है
  • वहा भारद्वाज ऋषि कल्प साधना करवाते थे
  • अभी कल्प साधना का प्रचलन नही है तो भी समूह का लाभ, समय व अवसर का लाभ लेने के लिए वहा जा सकते हैं
  • Unmatured Mind पर स्थान विशेष का भी प्रभाव पड़ता है परन्तु Matured Mind वाले जो ईश्वर को हर जगह मानते है, वे अपने घर बैठे भी इसका लाभ ले सकते हैं, उसके लिए घर भी तीर्थ के समान है
  • एक बार कबीर दास जी ने लोगो से कहा कि यहा पर सर्वत्र स्वर्ग ही स्वर्ग है तुम जहा कहते हो कि यहा आकर व्यक्ति नरक में जाता है तो हम वही जाकर स्वर्ग में जाकर दिखाएंगे तो उन लोगों ने बताया कि ‘मगर’ वह स्थान है तो कबीर जी ने मगर में ही अपना शरीर छोडा व अपने शरीर को फूल बना लिए, आज भी उनकी समाधि वहा पर विद्यमान है

यहां स्थान विशेष विशेषता आपने बताई, समय विशेष की यहा क्या विशेषता है कि यह 144 वर्ष बाद आया है

  • समय विशेष में हर 12 वर्षो  के बाद एक युग बदल जाता है, यह देवताओं का एक वर्ष कहलाता हैं, यह प्रकृति की विशेषता है तथा यह समय साधना के लिए मजबूत होता जाता है, इसलिए इसे महत्व दिया है
  • प्रतिदिन यदि हम साधना करते हैं तो उसकी चमक अलग रहेगी, यह कुंभ भी लगातार चलता आ रहा है तो इसकी उर्जा अदभूत है
  • हमारी साधना अक्सर खंडित हो जाती है परन्तु उस स्थान पर अनेको वर्षो से यह कुंभ का मेला लगातार चल रहा है, खंडित नही हुआ, इसलिए भक्त इसे अधिक महत्व देते है    🙏

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